Friday 9 April 2010

आज लगभग डेढ़ साल के बाद मिट्ठू का नाम अपने फ़ोन पे देख के लगा जैसे के मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा. वही मोबाइल की धुन जो मैंने मिट्ठू के नाम पे सेट कर रखी थी अचानक से फ़ोन पे बज uthi. पहले तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ लेकिन दो बार चेक करने के बाद मैंने फ़ोन उठाया. उस समय दिन के २:४५ बज रहे थे और मैं होटल के कमरे में ही बैठा गाना सुन रहा था. मिट्ठू ने मुझसे बात के मेरे लिए इतना ही काफी था की उसे मैं आज भी याद था. उस से बात करने के बाद थोडा सा तो दुखी हुआ लेकिन फिर मैंने अपने आप को समझा लिया. दुःख तो इस बात से हुआ के उसने ये जानने  के लिए फ़ोन किया था के मैं दिल्ली कब आ रहा हूँ, और उन  कागजात पे दस्तखत कब करूंगा?   और अच्छा ही है तीन लोगों के दुखी रहने से तो अच्छा है न के दो लोग खुश रहें. मेरा क्या है आधे से ज्यादा लाइफ तो ख़तम हो चुकी  है और जितनी बची है वो इस सहारे गुजर जाएगी की मिट्ठू खुश है अपनी लाइफ में. वैसे भी जब तक माँ है मुझे भी तभी तक रहना है. मिट्ठू ने मुझसे पुछा के मुझे किसी cheej की जरूरत है क्या तो मैंने उससे उसका  मोबाइल नंबर माँगा, लेकिन आज एक बार फिर मिट्ठू ने मुझसे झूठ बोला, हालाँकि उसे झूठ बोलने की कोए जरूरत नहीं थी वो मुझे साफ-साफ ये बोल सकती थी की वो नहीं देना चाहती है, लेकिन उसने बोला की उसके पास मोबाइल नहीं है. मिट्ठू से ही मुम्म और बीजी के बारे में सुन कर अच्छा लगा. हे भगवन माँ और मिट्ठू को खुश रखना. यही मेरी अंतिम प्रार्थना है तुमसे. मेरी सारी खुशियाँ मिट्ठू की और उसके सरे गम मेरे. मैंने मिट्ठू से उसका कसम  तोड़ने के बारे में पुछा लेकिन उसने मना कर दिया. हे भगवन अब मुझसे बर्दास्त नहीं हो पाता है.

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